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हंसिए क्योंकि यही वह दूसरी सर्वोत्तम चीज है जिसे आप अपने होंठों से सम्पन्न कर सकते हैं।- टूनजोक

कार्टूनेचर फ़ीचर सेवा

Tuesday, August 31, 2010

प्यार


खुल्लमखुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों...




बेवकूफ़
कल्लू- बताओ, हर डॉक्टर अपने बेटे को डॉक्टर और वकील अपने बेटे को वकील ही बनाना चाहता है। फ़िर कोई बेवकूफ़ अपने बेटे को बेवकूफ़ क्यों नहीं बनाना चाहता?
लल्लू- इतना हर बेवकूफ़ जानता है कि डॉक्टर और वकील उसके बेटे को बेवकूफ़ बना ही देंगे!

बटुआ
"साहब, आपका बटुआ शायद घर रह गया है..."
"नहीं, मेरी जेब में है।"
"तो भगवान के नाम पर रुपया-दो रुपया दीजिए न!" भिखारी बोला।

Cartoon © T.C. Chander 2010

Saturday, August 14, 2010

आज़ादी ६३


बधाई!
आज़ादी के ६३ साल
जैसे अपने हिन्दुस्तान/भारत/भारतवर्ष/हिन्द की आज़ादी के ६३ साल अटल सत्य हैं वैसे ही इण्डिया के भी हैं। चोर-बदमाशों-उठाईगीरों-अपराधियों, सरकारी अफ़सरों, पुलिस, नेता-जनप्रतिनिधियों, प्रशासन, न्याय व्यवस्था, ठेकेदार-दलाल-धन्धेबाज़ों, तमाम माफ़ियाओं, खास बड़का पत्रकारों, राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, महंगाई बढ़ने-बढ़ाने इत्यादि की मनमानी आज़ादी भी अटल सत्य है। इनके निरन्तर पोषण से चुसे आम जैसे आम नागरिक का निरन्तर शोषण होते रहना भी तय है। चोर-चोर मौसेरे-चचेरे-फ़ुफ़ेरे...भाई!


भारत के आमजन की आज़ादी १५ अगस्त और २६ जनवरी को कुछ देर हाथ में कागज़की बनी तिरंगी झण्डी पकड़ने तक सीमित हो गयी है। खास जन महंगी खादी पहन खादी का झण्डा फ़हराते हैं। शिक्षा, सुरक्षा, भोजन वगैरह की समस्याओं के साथ-साथ वोटर किस हाल में है, इससे इण्डिया को कोई लेना-देना नहीं। लगभग हर सरकारी विभाग ने उसको निचोड़ने का लाइसेंस ले रखा है। लूटखसोट कर तिजोरियां भरने वालों को खुली छूट है। बेईमान-धोखेबाज़ों की नेताओं से मिलीभगत और आमजन को लूटकर धन कमाने के तमाम उदाहरण मौज़ूद हैं। कुछ ही सालों में अकूत धन कमा लेने वाले लोग विश्व के सबसे धनी लोगों की पंक्ति में जा खड़े हुए हैं। संदिग्ध तरीकों से की गयी इनकी कमाई की जड़ में आम आदमी का इनके लिए कॉमन वैल्थ बन जाना है। कोई देखने-रोकने वाला नहीं है, जो समर्थ हैं उनकी आंखों पर इन धन्धेबाज़ों की बांधी काली कमाई की पट्टी है। भ्रष्टाचार इनका इष्टदेव है सो इनका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है।


हर १५ अगस्त और २६ जनवरी को आम आदमी यही सोचता है- चलो १ साल और कट गया। उसके मन में न कोई उत्साह होता है न ही इन राष्ट्रीय त्यौहारों को लेकर कोई खास उमंग। यह स्थिति बदलने का न कोई प्रयास हुआ और न ही इसकी कोई उम्मीद दिखायी देती है। शायद ही कोई हो जिसके मन में इसके लिए प्रयास करने की बात आती हो। खैर, आज़ादी की ६३वीं साल की बहुत-बहुत बधाई...शुभकामना!

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